Wednesday, 2 October 2013

रेत का आशियाना



तुम्हे याद है 

बरसात की वो शाम 
बादल भी बरस कर 
कुछ सुस्ता रहे थे
और हम तुम 
आँगन में बैठे 
चाय पी रहे थे

आँगन में रेत थी 
मरम्मत के लिए 
और तुम उसे देख 
बच्ची बन गई

तुमने मेरे हाथ पर 
रेत थपक थपक कर 
एक छोटा घर बनाया

और फिर उसे कुछ
तिनको, सूखी पत्तियों
और छोटे पत्थरों से

शिद्दत से सजाया

आज भी मैंने 
दिल के एक कोने में 
संभाल कर रखा है 
वो पहला आशियाना 
हमारे प्यार का….