तुम्हे याद है
बरसात की वो शाम
बादल भी बरस कर
कुछ सुस्ता रहे थे
और हम तुम
आँगन में बैठे
चाय पी रहे थे
आँगन में रेत थी
आँगन में रेत थी
मरम्मत के लिए
और तुम उसे देख
बच्ची बन गई
तुमने मेरे हाथ पर
तुमने मेरे हाथ पर
रेत थपक थपक कर
एक छोटा घर बनाया
और फिर उसे कुछ
तिनको, सूखी पत्तियों
और छोटे पत्थरों से
शिद्दत से सजाया
और फिर उसे कुछ
तिनको, सूखी पत्तियों
और छोटे पत्थरों से
शिद्दत से सजाया
आज भी मैंने
दिल के एक कोने में
संभाल कर रखा है
वो पहला आशियाना
हमारे प्यार का….