Thursday, 15 January 2015

एक ख्याल

आज सुबह जब आँख खुली तो यूँ ही एक ख्याल आया कि पूरी दुनियां में कितने ऐसे लोग होंगे जो आज का सवेरा नहीं देख पाये होंगे ।
रात के दामन में हॉस्पिटल के बेड पर किसी सामान की तरह पड़े पड़े यां घर में परिवार से घिरे अपने अंदर उठती किसी अजीब सी तकलीफ से अकेले लड़ते हुए जिन्होंने अपनी आखरी सांस ली होगी । शायद काले साये उन्हें ले गए होंगे यां रौशनी के चमकते टुकड़े ने उन्हें अपनी तरफ खींचा होगा, कौन जाने? जो गए तो कितनी ही कहानियां अधूरी छोड़ गए, कितनी ही बातें अनकही रह गई, कितने ही ख्वाब कभी मुकमल ही नहीं हुए। 
फिर भी अँधेरी रात के बाद फिर चमकती सुबह हुई और इस सुबह में हम जैसे करोड़ों अरबों लोगों ने आँखे खोलीं हैं । तो क्या हमें शुक्रिया अदा नही करना चाहिए ? हम वो खुशनसीब लोग हैं जिन्हें फिर से ये खूबसूरत दिन नसीब हुआ है कितनी ही अधूरी कहानियों, अनकही बातों और ख़्वाबों को मुक्कमल करने का एक और मौका मिला है ।

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