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प्यार का सफ़र
मेरे अनिकेत,
बहुत कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे, कुछ दिल में दबा सा है वो बाँटना चाहती हूँ, सोचा था मिलकर करुँगी सारी दिल की बातें पर फिर ख्याल आया कि तुम तो इतना बोलते हो कि मुझे तो कुछ कहने का मोका ही नहीं दोगे ।
अरे! तुम्हे यकीन नहीं हो रहा अभी कल ही की बात ले लो मैंने तुम्हे रेस्टोरंट में कोफ्फी पीने के लिए इसलिए बुलाया था कि मैं तुमसे कुछ कहना चाहती थी पर ना जाने तुमने कहाँ कहाँ की बातें निकाल ली और कोफ्फी के साथ दो - दो समोसे चट कर जाने तक भी तुम्हारी बातें जब ख़त्म नहीं हुई तो मजबूरन मुझे अपनी बातों की पोटली फिर से लाद कर घर आना पड़ा था। इसलिए आज नो रिस्क अब मैं तुम्हें लिखकर दूंगी ताकि फिर से तुम्हारी बक बक में, मेरी बातें अधूरी न रह जाएँ ।
चलो आज शुरू से शुरू करती हूँ। मुझे कॉलेज में आये अभी 5-6 दिन ही हुए थे जब नम्रता तुम्हारी क्लासमेट और मेरी पड़ोसन ने मुझे तुमसे मिलवाया था। यूँ तो वो मुलाकात बहुत फॉर्मल थी पर शायद उस दिन मैं जितने भी नए चेहरों से मिली थी उसमे से घर जाने के बाद मुझे बस तुम्हारा ही चेहरा कुछ कुछ याद था।
कुछ ही दिनों में हमारा बड़ा सा ग्रुप बन गया, साथ बैठे घंटों गप्पे लगाना, साथ खाना, घूमना, बेतुकी बातो पे बड़ी बड़ी शर्त लगा लेना और दिन भर एक दुसरे की खिंचाई करके ठहाके लगाना जैसे दिन की एक अहम् खुराक सी बन गई थी। तब ही से 20 लोगो के हमारे ग्रुप में मुझे तुमसे बात करना ज्यादा अच्छा लगता था, घर आकर भी मैं तुम्हारे फालतू जोक्स पर मुस्कुराया करती थी, बहुत जल्दी हम दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए थे, तुम मुझे बाइक पर घर छोड़ने आते मैं तुम्हारे छोटे मोटे कई काम कर लिया करती पर एक बात पर मैंने खुद भी कभी गौर नहीं किया था कि पहले ही दिन से मेरी तुम्हे लेकर फीलिंग्स और बाकि सारे दोस्तों को लेकर जो फीलिंग्स थी उसमे कुछ अंतर था। फिर ना जाने कब तुमने किस बात पर क्या कहा था ये मुझे अनजाने में ही याद रहने लगा, जैसे दिमाग का कोई बाय डिफ़ॉल्ट फंक्शन हो। मैंने महसूस किया था कि जब तुम कहीं आस पास होते तो मैं चुपके से तुम्हे आँखों के किनारों से देखा करती थी। घर आकर भी तुम्हारा ही ख्याल रहता था, जिस दिन तुम कॉलेज नहीं आते सबके होते हुए भी मैं अकेला सा महसूस करती, हर पल जैसे बोझ लगता, तुमसे ही अपने दिल की हर बात कहने का मन करता, उदास होती तब भी निगाहें सिर्फ तुम्हे ही ढूंढ़ती थी।
पर मैं अपने जज्बातों को लगातार नजरंदाज करती रही, हर दिन खुदसे ही लड़ती समझाती कि तुम बस बहुत अच्छे दोस्त हो और ये जो अलग से अहसास है वो बस आकर्षण है और दो चार दिन में ये भूत भी उतर जायेगा ।
एक दिन हम सब यूँ ही कैंटीन में हर रोज़ की तरह चाय की चुस्कियों के साथ इधर उधर की बातों में मशगूल थे, किसी बात पर हँसते हँसते तुमने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया और तुम्हारा हाथ मेरे सूट के गले में लगी डोरी पर चला गया, और ना जाने किस ख्याल में तुमने उसे खोल दिया, जैसे ही तुमने मुझे, फिर अपने हाथ की ओर देखा तो तुम बुरी तरह झेंप गए थे, पर उस दिन पहली बार मैं खुदको ये मानने से रोक नहीं पाई थी कि कहीं न कहीं तुम्हारी उस शरारत का मुझे एक अरसे से इन्तेजार था |
मेरे अनिकेत,
तुम्हे याद है जुलाई महीने का वो दिन….
बहुत तेज बारिश हो रही थी और तुम मुझे हमेशा की तरह घर छोड़ने चले थे, कितना खुबसूरत समां था ना सब कुछ ताजगी में नहाया लग रहा था। एक ओर बच्चे पानी में नाव चलाकर उसके डूबने पर भी खिलखिला रहे थे और कहीं कोई नया जोड़ा एक ही छत्री में आधे गीले आधे सूखे कदम से कदम मिलाकर चलते अपने प्यार की पहली बारिश को यादगार बना रहे थे । हम भी कहने को तो साथ भीग रहे थे, पर दोनों पर जैसे अलग अलग आसमान बरस रहा हो, तुमपर सिर्फ पानी और मुझपे तुम्हारे लिए प्यार के पहले अहसास भी शामिल थे उन बूंदों में, यां शायद तुम पर भी वही अहसासों की बुँदे गिरी हो कौन जाने, मेरे मन में दबे जज्बातों ने फिर से जंग छेड़ दी और इस बार मैं उनसे हार गई। मैं थक गई थी खुदको तुमसे दूर करते करते इस सच से इनकार करते करते की तुम सिर्फ मेरे दोस्त नहीं हो, मैं अब बस उस वक़्त को वहीँ रोक देना चाहती थी, तुम्हारे साथ उस बारिश की हर बूँद के अहसास को अपने मन में बसा लेना चाहती थी तुम्हारे साथ एक ही छत्री के नीचे आधा भीगना चाहती थी, तुम्हारे साथ हमारे प्यार की पहली बारिश में तुमसे कह देना चाहती थी की मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम्हारे साथ कुछ नए सपने देखना चाहती थी, उस आधे घंटे के छोटे से सफ़र में कितना पास आ गई थी मैं तुम्हारे कितनी ही बार मेरे दिल ने कहा कि तुम्हे कस के थाम लूँ कितनी ही बार मैं तुम्हे अपने दिल की बात बस कहते कहते रुक गई थी।
यूँ हमेशा बक बक करने वाले तुमने कभी कहा नहीं था के मैं तुम्हारे लिए हूँ क्या, सिर्फ दोस्त या दोस्त से कुछ ज्यादा या फिर वो जो तुम मेरे लिए बन गए थे। पर बिन कहे सुने भी इतना तो जान लिया था की कुछ तो था तुम्हारे मन में भी, वरना क्यूँ तुम मुझपे हक जमाते, मेरे नाराज होने पर परेशान होते, मुझे मनाने के सारे मुमकिन पेंतरे आजमा लेते। घंटो मुझसे अपने दिल की हर बात कहते और मेरे दिल की बात अक्सर बिन कहे ही समझ लेते |
और उस दिन जब हम सब फिल्म देखने गए थे....
तुमने फिल्म हॉल के अन्धेरें में मेरा हाथ चुपके से पकड़ लिया था और जब मैंने हाथ छुड़वाने की कोशिश की तो तुमने अपना हाथ और कस लिया था, उस पल फिल्म हॉल की वो कई छोटे छोटे बल्बों की क़तार से सजी छत मुझे सितारों से भरा आसमान लग रही थी और हम उस आसमान के नीचे हाथ थामे एक अलग ही भाषा में बात कर रहे थे, स्पर्श की भाषा।
मैं हाथ छुड़वाने लगी तो -
तुमने कहा- “मैंने ये हाथ छोड़ने के लिए नहीं थामा संध्या”
मैंने कहा- “उम्र भर थाम पाओगे?”
तुमने कहा- “अगर तुम साथ दोगी तो”
मैंने जवाब में अपना सर तुम्हारे कंधे पर रख दिया।
हाँ वो प्यार ही था पर उसे बयां करने के लिए शब्दों की दरकार नहीं थी, उसने खुद ही अपनी एक अलग भाषा बना ली थी। कभी आँखे घंटो बातें करती तो दिल ख़ामोशी से सुनता और होंट जवाब में मुस्कुरा देते।
मेरे अनिकेत,
मैंने एक साल में खुदको बहुत बदलते देखा, अपने ही दायरों के पेड़ से मैं एक पत्ते की तरह अलग हो गई थी और तुम हवा की तरह जहाँ बहते, वहीँ मैं भी तुम्हारे साथ बहने लगी थी उड़ने लगी थी जिस भी दिशा तुम ले जाते वो मुझे अपनी सी लगती वहीँ अपना आशियाना बना लेती |
प्यार में ऐसा ही होता है ना दो लोग जाने कब इतना जुड़ जाते है की किसी एक का रास्ता दुसरे की मंजिल बन जाता है, एक की चाहत दुरसे का मकसद । तुम्हारे साथ इस नए सफ़र में मैं इतना खो गयी कि ये भूल ही गयी थी कि दूर से बेहद खुबसूरत लगने वाले इस रास्ते पर कई इम्तेहानो के कांटे भी हमारा इन्तेजार कर रहे थे |
उस दिन तुम कॉलेज नहीं आये थे मैं और नम्रता कॉलेज केन्टीन में बैठे चाय के साथ कुछ असाइनमेंट डिस्कस कर रहे थे तभी सामने से आ रही एक लड़की को देखकर नम्रता ने चहकते हुए कहा "अरे! शेफाली तुम? कब आई दिल्ली से, कितने दिन हो यहाँ"
शेफाली- "परसों रात को ही आई और इस बार पूरे एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आई हूँ”
"Oh great !”
फिर नम्रता ने मेरा भी शेफाली के साथ इंट्रोडक्शन करवाया और वो एक बार फिर शेफाली से बात करने में मशगूल हो गई-
"और बताओ तुम्हारा और तुम्हारे हीरो का कैसा चल रहा है ?"
शेफाली बोली- "बहुत अच्छा चल रहा है अभी कल ही तो अनिकेत मुझे फिल्म दिखाने ले गए थे, उसके बाद डिनर फिर लॉन्ग ड्राइव..."
शेफाली बोले जा रही थी पर मेरा दिमाग एक ही शब्द पर अटका हुआ था - 'अनिकेत'
मुझसे रहा नहीं गया और मैं बीच में ही टोकती हुई पूछ बैठी ।
"कौन अनिकेत?”
नम्रता ने जो जवाब दिया उससे एक पल में सब कुछ बदल गया। तुम तो जानते ही हो उसने क्या कहा होगा। उसने कहा -"अरे! अपना अनिकेत, तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड, सारा कॉलेज जानता है तुम्हे कैसे नहीं पता शेफाली अनिकेत की गर्लफ्रेंड है"
मेरे अनिकेत,
उस एक पल में जिंदगी ने ऐसे मुंह मोड़ लिया जैसे बरसो की नाराजगी की सजा एक ही बार में दे देना चाहती हो।
हजारो सवाल एक साथ दिमाग में चल रहे थे।
जो रिश्ता मेरे और तुम्हारे बीच था क्या था वो?
क्या कोई रिश्ता था भी हमारे बीच?
जो तुमने आँखों की भाषा में कहा था मुझसे क्या वो तुमने सच में कहा था या वो बस मेरे मन की ही उपज थी अपना दिल बहलाने के लिए?
क्या जो भी मुझे महसूस हुआ वो सब जूठ था ?
क्यूँ आखिर तुमने मुझे शेफाली के बारे में नहीं बताया था?
मेरे पास किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था
कुछ सवालो के जवाब तो तुम जरुर दे पाते पर अब मुझमे ही जवाब सुनने की हिम्मत नहीं थी क्यूंकि सच तो आँखों के सामने ही था | जब अगले दिन तुम आये तो बिलकुल हमेशा की तरह ही मिले यहाँ तक की शेफाली को देखकर भी तुम्हारे चेहरे पर कोई भाव ही नहीं आये, जैसे तुम्हे मेरे और शेफाली के एक ही जगह एक साथ होने से कुछ फरक ही न पड़ता हो।
मुझे गुस्सा आ रहा था खुद पर भी और तुम पर भी क्यों विश्वास किया मैंने तुमपर कई बार जी में आया कि तुमसे बहुत लडूं कि तुमने क्यूँ मुझे शेफाली के बारे में पहले नहीं बताया, क्यूँ मुझे खुदके इतना करीब आने दिया। पर फिर होश आया कि किस हक से तुमसे कहूँ ये सब, मैं थी ही कौन तुम्हारी।
मैंने अपने कदम पीछे लेने का फैसला कर दिया था, तुमसे हर मुनासिब दूरी बनाने का फैसला कर लिया था। पर सिर्फ मैं ही जानती हूँ, कितना मुश्किल था तुम्हारे सामने रहकर खुदको तुमसे प्यार करने से रोकना। कितना मुश्किल था जब तुम मुझे देखकर मुस्कुराते थे उस वक़्त अपने दिल को तेज धड़कने से रोकना । कितना मुश्किल था जब तुम मेरा हाथ पकड़ते थे और मेरा खुदको ये चाहने से रोकना कि ये हाथ तुम हमेशा के लिए थाम लो, कितना मुश्किल था खुदको बेख्याली में तुम्हारा नाम किसी नोटबुक पर लिखने से रोकना, कितना मुश्किल था खुदको रात भर तुम्हे बिना पाए ही खो देने के दर्द में आंसू बहाने से रोकना और सबसे ज्यादा मुश्किल था तुम्हे शेफाली के आस पास भी देखना।
नफरत करना चाहती थी मैं तुमसे पर तुम्हे प्यार करने से भी खुदको रोक नहीं पा रही थी, कैसे अचानक से सिर्फ तुम्हारी दोस्त बन जाती?
उस दिन कॉलेज के बाद जब मैं तुम्हारी बाइक के पीछे बैठ ही रही थी कि शेफाली आ गई और उसने कहा "प्लीज अनिकेत आज मुझे घर ड्राप कर दो मुझे कहीं जाना है और मुझे लेट हो रही है" तुम कहते तो शायद मैं बर्दाश नहीं कर पाती इसलिए खुद ही उतर गई और तुमसे कहा कि मैं टेक्सी ले लूंगी,जिस तरह शेफाली तुम्हारे इतना करीब बैठी थी उसे देख पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं था उस दिन जाना था जलन किस चिड़िया का नाम है घर आकर मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं फूट फूट के रोने लगी ।
रोना भी कभी कभी बहुत जरुरी हो जाता है आँखों के साथ मन भी कुछ साफ हो जाता है, मेरा मन भी कुछ हल्का महसूस कर रहा था फिर अचानक मुझे याद आया कि
जिस दिन का शेफाली ने जिक्र किया था कि वो तुम्हारे साथ फिल्म देखने फिर डिनर और लॉन्ग ड्राइव गई थी उस दिन तो तुम मेरे घर थे।
तो क्या शेफाली सब कुछ जूठ बोल रही थी?
मेरे अनिकेत,
इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई मुझसे मैंने यूँ ही शेफाली की बातो पर यकीन कर लिया, वो तो शक्ल से ही जूठी लग रही थी मैंने दूसरे दिन सुबह उठते ही शेफाली को फोन करके पार्क मिलने बुलाया और वही उसपे धावा बोल दिया और घमकी भी दी कि अबकी बार भी जूठ बोला तो सारे कॉलेज में क्या शहर में बदनामी करवा दूंगी। मजबूरन उसे सच बताना ही पड़ा कि जब वो कॉलेज में थी उसकी सारी फ्रेंड्स के बॉय फ्रेंड्स थे बस वो ही इस मामले में पीछे रह गई थी तो उसने अपने जूनियर यानि तुम्हे फसाया और सारे कॉलेज में ढिंढोरा पीट लिया की वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड है और तुम्हे अपने आंसुओ से बेवकूफ बनाया की तुम किसी को सच ना बताओ की वो सिर्फ दोस्त है तुम्हारी और वो जब कॉलेज के साथ साथ शहर भी छोड़ के गई तो तुम्हे लगा की अब ये जूठ भी ख़त्म और तुम इस पूरे मामले को भूल ही गए।
मुझे फिर से तुम पर बहुत गुस्सा आया कि तुमने मुझे पूरा झमेला बताया क्यों नहीं, वैसे तो तुम्हे चुप करवाना मुश्किल हो जाता है पर जहाँ तुम्हे बोलना चाहिए वहां मुह नहीं खुलता तुम्हारा। फिजूल इतना नुकसान करवा दिया।
मैंने पापा से ली उनकी फेवरेट रफ़ी साहब के दर्द भरे गानो की cd सुन सुन के घस ली थी, रोज़ रात रो रो के आँखे सुजा ली थी और उसके बाद पता पड़ता है कि इतने दिन का ये बेवफाई का मातम बेकार था, शेफाली तो तुम्हारी गर्लफ्रेंड थी ही नहीं कभी।
मैं सीधा कॉलेज गई तुम्हारी खबर लेने पर शेफाली वहां मुझसे पहले ही पहुँच गई और तुम्हे सब कुछ बता दिया और तुम जान बूझ के खाली कमरे में छुप कर बैठ गए और जैसे ही मैंने तुमपर चिल्लाना शुरू किया तुमने अपना ट्रम्प कार्ड चल ही दिया।
तुम मेरे पास आये मेरा हाथ थामा और मेरी आँखों में आँखे डालकर कुछ देर यूँ ही देखते रहे आज फिर एक अरसे के बाद हम खामोश थे पर हमारी आँखों ने ढेर सारी बातें कर ली, तुमने कहा "बहुत परेशान कर दिया ना तुमको प्लीज मुझे माफ़ कर दो"
मैंने कहा "गलती इतनी बड़ी है तो सजा तो मिलेगी"
तुमने कहा "तुमारी हर सजा मंजूर है मुझे"
मैंने कहा "जिन्दगी भर इस सरफिरी को झेलना पड़ेगा"
तुमने कहा "इस सरफिरी का सर्फिरापन भी सर आँखों पर"
फिर तुम कुछ और कहने लगे और मैं गुस्सा हो गई और मैंने कहा "ये भी आँखों आँखों में ही कहोगे? मेरे कान कब से तरस रहे है"
और तुम समझ गए और तुमने पहली बार अपने मुह से कहा "I love you Sandhya" और मैं बस मुस्कुरा दी |
मेरे अनिकेत,
कॉलेज के उस दिन से लेकर आज तक हमारे प्यार ने कितने उतार चढाव देखे, तुम्हारा ऑस्ट्रेलिया जाकर पड़ने का सपना था और मैं चाहती थी कि तुम यहीं इंडिया में ही रहो, कितना लड़ी थी मैं तुमसे पर कितना प्यार से मना लिया था तुमने मुझे ।
फिर तुम आये तुम्हे अच्छी नोकरी भी मिल गई पर मेरे पापा हम दोनों की जाति अलग होने के कारन शादी के लिए नहीं माने, उन्हें मनाते मनाते थक गई थी मैं और मैंने कहा भी था तुमसे के भाग चलते है पर तुम नहीं माने तुम मुझे हमेशा खुश रखना चाहते थे और जानते थे की अपने परिवार को नाराज करके मैं तुम्हारे साथ ज्यादा दिन खुश नहीं रह पाऊँगी। तब भी तुम्ही ने संभाल लिया था सब कुछ |
मेरे पापा के कई बार तुम्हे बेइज्जत करके घर से निकालने के बाद भी तुमने हार नहीं मानी, कभी तुम नाराज नहीं हुए उनकी इस बेरुखी पर, उस दिन जब फिर पापा ने तुम्हारी बात सुने बिना ही तुम्हे चले जाने को कह दिया था मैं बहुत रोई थी और फिर भागकर शादी करने की जिद्द पर अड़ गई पर उस दिन भी तुम्ही ने मुझे समझाया की "तुम्हारे पापा तुमसे बहुत प्यार करते है इसलिए ही मेरा तुम्हारे लिए प्यार और सब्र का इम्तेहान ले रहे है यूँ दरवाजा बंद करते करते एक न एक दिन उन्हें अहसास हो जायेगा की "
और तुम सही भी थे एक दिन वो दरवाजा खुल ही गया हमारे प्यार के लिए |
तुमने हर कदम पर कितना साथ दिया मेरा कभी सोचा नहीं था की इतना बोलने वाले तुम इतने संजीदा भी होंगे इतनी समझदारी से हमारे प्यार के इस सफ़र को इतना हसीन बना दोगे।
मैं आज ये सब इसलिए कह रही हूँ अनिकेत की मैंने कभी तुम्हे अपने जज्बात शब्दों में जाहिर नहीं किये कभी तुमसे ये नहीं कहा की मैं तुम्हे पागलों की तरह चाहती हूँ, तुम्हारे बिना एक पल भी सजा लगती है मुझे, हर गुजरते दिन के साथ मेरा तुम्हारे लिए प्यार और सम्मान बढता ही जाता है तुम्हारे साथ ही मैंने रिश्तो को और गहराई से समझा है, तुम्हारे साथ ही मैंने जाना है के अपनों के साथ चलकर काँटों भरा रास्ता भी महकता चमन लगता है।
कल जब हमारी शादी हो जाएगी तब भी तुम यूँ ही मेरा हाथ थामे रखना और हम दोनों प्यार के इस सफ़र में नई नई मंजिलें पार करते रहेंगे ।
तुम्हारी,
संध्या