एक अरसे बाद आज अपने ही ब्लॉग में लिखकर अजीब सी ख़ुशी का अहसास हो रहा है जैसे बहुत दिन दूसरे शहर सेर सपाटा करके घर लौटने पर जो ख़ुशी मिलती है ना बिलकुल वैसी ………
अच्छा लग रहा है अपने इस घर में फिर से लौटकर जहाँ की दीवारें भी मेरी है और खिड़कियां भी.... और खिड़की के बाहर वो जो चिड़िया बैठी है ना रूठकर वो भी है तो मेरी अपनी ही पर बस अभी ज़रा नाराज है, बहुत दिनों से इसे इस खिड़की पर कोई दाना रखा हुआ जो नहीं मिला और आज दाना पानी सब रखा है तो थोड़े नखरे इसके भी बनते है।
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