पिछले कई दिनों से सुबह अख़बार उठाते ही जो पहली खबर अपनी ओर ध्यान खींचती वो होती स्वाइन फ़्लू का कहर जो अब हमारे प्रदेश, हमारे अपने शहर में दस्तक दे चुका था। हर रोज़ मरने वालों और नए H1N1 पॉजिटिव की संख्या बढ़ती ही जा रही है जैसे कोई होड़ लगी हो और ये फ्लू सभी को अपनी चपेट में लेकर ही मानेगा। शहर के अस्पतालों में डॉक्टर्स और मरीजों दोनों के हाल ख़राब थे जरा सा जुकाम होता और सब सीधा अस्पताल का रुख करते , दवाइयाँ काम पड़ रहीं थी, वैक्सींस खत्म हो गए और डर बढ़ता ही जा रहा था। इससे पहले भी कई बार ये कहर बरस चुका है पर हमारे शहर में ऐसा पहली बार हो रहा था तो डर और मिथ दोनों ही ज्यादा थे।
कपूर और ईलायची सूँघो…….
आयुर्वेदिक काढ़ा पियो……..
तुलसी के पत्ते चबाओ……..
किसी से हाथ ना मिलाओ……..
शादी यां मौत पर मत जाओ……..
नीम के पत्ते घर में लटकाओ…………
कोई जुकाम वाला घर आ जाये तो उसे तुरंत भेज दो......
घर का कोना कोना साफ करो ……
अंतहीन हिदायतें .........
हाल ये हुआ कि मिर्च के छौंक से भी किसी को छींक आती तो दिल बैठ जाता। घर दिन में कई बार डेटोल फिनाइल से साफ किया जाने लगा, बाहर आना जाना कम हो गया ……
सोचती हूँ इस फ़्लू को क्या पड़ी थी हमारे देश में आने की क्या वैसे ही जान की आफ़ते यहाँ कम है?आतंकवाद, भ्रष्टाचार, ग्लोबल वार्मिंग तो खेर बहुत बड़ी बड़ी बातें है..... यहाँ तो रोड पर चलो तो सरफिरे ड्राइवर्स जो खुदको और हमें मारने की सुपारी लेकर ही घर से निकलते है उनसे भी खतरा... दो वक़्त की रोटी में भी ज़माने भर की मिलावट का खतरा। दूध पीते है तो ना चाहते हुए भी कपड़े धोने के सर्फ और साबुन की महक आ जाती है, और उसपर हमारी लाइफस्टाइल तो खेर बोनस है ही ....
आपके मेरे जैसा आम इंसान आखिर हर रोज़ कितनी जंग लड़ेगा? एक एक सांस के लिए जंग, एक सच्ची मुस्कराहट के लिए जंग, चिंता मुक्त एक नींद के लिए जंग....
और अब इस मरे स्वाइन फ़्लू से भी जंग.....
हाय ……
आज सुबह से जुकाम था इसलिए सोचा जल्दी जल्दी अपने मन की बात तो लिख दूँ, पर कुछ ज्यादा ही लिख दिया, वैसे दो अदरक वाली चाय से जुकाम जैसे आया था वैसे ही चला भी गया।
शायद आज भर की जंग तो मैंने जीत ही ली है ...... :-)
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