Monday, 30 March 2020

लॉक डाउन इन घाना day-1


आज सुबह फिर से कुछ हड़बड़ा कर उठी मैं , सीधा घड़ी की तरफ देखा 6:30 बज चुकी थी , लगभग कूद कर उतरी बिस्तर से और मुँह धोने चली गई ।
आँखों पर पानी लगा तो नींद पूरी तरह से खुल गई, तब जाकर अहसास हुआ कि लॉक डाउन शुरू हो चुका है। क्या करने के लिए ऐसे झटके से उठी? किसे बाहर जाना है, यां किसके लिए दरवाज़ा खोलना है। किस काम में देरी हुई तो प्रलय आ जायेगा ?
खेर नींद तो खुल ही चुकी थी सोचा आंगन में बैठ कर चाय ही पी ली जाए । हर रोज़ भी कोशिश करके चाय हम आँगन में ही पीते है, सुबह की ताज़ी हवा जब तक चाय के प्याले के साथ अंदर न गटकें, हम दोनों पति पत्नी की आंखे नहीं खुलती। हाँ पर हर सुबह वक़्त इतना नही होता कि ताज़गी के साथ सुकून भी महसूस किया जा सके । चाय की हर चुस्की के साथ दिमाग में दिन भर में करने वाले कामों की फेहरिस्त ही चलती रहती है।
आदतन आज भी जब चाय लेकर आँगन में बैठी तो कुछ देर काम और देर न हो जाने की बेचैनी रही पर कुछ देर में वो धीरे धीरे जाती रही।
मुझे याद नहीं आखरी बार मैंने कब देर तक चिड़ियाओं के झुण्ड को दीवार पर उनके लिये रखे गए दाने को चुगते हुए देखा हो, हिलते हुए पत्तों से हवा का रुख महसूस किया हो, कब मैं गमले में उगती नई कोंपलों यां कलियों को देख कर चहकी हूँ। याद नहीं की चाव से जो विंड चाइम आँगन में लगाया था उसकी मीठी सी आवाज़ ने कब मेरे कानों को इतनी ठण्डक पंहुचाई हो कि हल्की सी मुस्कान मेरे चेहरे में खुद ब खुद बिखर गई हो?
और आँगन में बैठना कोई ऐसा काम नही था जो मैंने कभी किया न हो यां अरसे बाद किया हो। रोज़मर्रा में शामिल था ये मेरे फिर भी आज के अहसास कुछ अलग थे । आज की ताज़गी भरी सुबह कुछ अलग थी। अब देखना ये है कि ये लॉक डाउन रोज़मर्रा के कामों से कौन कौन से छुपे अहसासों को निकालने में कामयाब होता ।

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