Friday, 10 May 2013

होड़

मैं घंटो तक सोचता रहा क्या है वो राज़,
जिससे निकल सकू मैं सबसे आगे,
जीत सकू पूरी दुनिया..
सब कुछ तो आजमा चुका अब क्या है,
जिससे अनजान हूँ मैं?
पहले था सबसे पीछे तो बस,
भीड़ को चीर कर आगे बढने की होड़ थी,
आज आगे हूँ सब पीछे छोड़
फिर भी भाग रहा हूँ.... जाने किस होड़ में?
भागते भागते न जाने कितना दूर आ गया,
और न जाने क्या और कितना पीछे छोड़,
पर अंततः इतना तो जान ही लिया कि,
जो बाकी था वो था किसी अपने का साथ,
इसलिए वही रुक गया,
उस हाथ के इन्तेजार में जिसे
थाम फिर नई दिशा में कदम बड़ा सकू....

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