अपने ख्वाबों की लाशों पर से हम गुजरते चले गए,क्या बताएं क़िस्मत के हाथों हम कैसे बिखरते चले गए।
जिन्हें नसीब हो रहमत-ए-खुदा वो बदनसीबी क्या जाने,कोई पूछे उनसे जो एक कतरा मुस्कराहट के लिएआरजू-ए-समंदर निगल गए।
कैद थे कुछ जज्बात दिल के इक रोशन टुकड़े में,एक सर्द हवा जो आई तो वो पन्ने भी ठिठुर गये।
बहकता तूफान भी ढूंढ़ता है शांत सुनसान रस्ते,हम तो फिर भी इंसान थे जिसने थामा वहीँ ठहर गये।
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