Sunday 29 September 2013

इंतज़ार के पल पार्ट -2

                       शाम गहरा गई थी, खिड़की से बारिश की हलकी हलकी बुँदे छवि के चेहरे और हाथों पर इधर उधर बिखर रही थी, छवि किसी सोच में डूबी हुई थी उसे ये अहसास ही नहीं हुआ कि यूँ खिड़की पर खड़े उसे अपनी और रजत की यादों में खोये हुए पूरा एक घंटा हो गया था, यूँ भी ध्यान कहीं और हो तो वक़्त का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है ।

          कुछ सोच कर छवि के आखों से आंसू की इक बूंद छलक गई पर बारिश की बूंदों ने उस बूंद को खुदमे समेट लिया और उसके साथ बह गई, जैसे उस बारिश को भी छवि का यूँ कमजोर पड़ना गवारा नहीं था। सच में बहुत कमजोर पड़ गई थी छवि इन तीन दिनों में ही रजत से उस दिन रिश्ता तोड़ कर तो आ गई थी पर तब से लेकर इन तीन दिनों में एक पल ऐसा नहीं था जब रजत की याद ने उसे रोने पर मजबूर न किया हो। कितनी ही बार उसने खुदको ही कोसा था के "इस बार भी तू ही बात संभाल लेती तो क्या बिगड़ जाता? जिस इंसान के बगैर  एक पल भी बोझ लग रहा है उसे हमेशा के लिए खो दिया तूने । प्यार में हर चीज़ बराबरी की ही हो जरुरी तो नहीं ना अगर रजत का गुस्सा तेज है, उसे बिगड़ी बातों को बनाना नहीं आता तो बस इसलिए तू उसे छोड़ कर आ गई? उसका प्यार, परवाह, साथ ये सब इन छोटी छोटी बातों के आगे हार गया?" छवि को खुदपर ही बहुत गुस्सा आ रहा था ।

          आज उसे रजत के साथ बिताये सारे अच्छे पल याद आ रहे थे, उसे याद आया के एक बार जब कॉलेज में बेटमिंटन के मैच के दौरान गिरने से उसके पैर में मोच आ गई थी और उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था तब रजत उसे किसी की परवाह किये बिना सबके सामने से गोद में उठाकर कॉलेज क्लिनिक तक ले गया था, कितना शर्मा गई थी छवि उस वक़्त|
छवि निढाल सी बिस्तर पर लेट गई पर नींद का एक रेशा भी उसकी आँखों में नहीं था, कुछ देर करवटे बदलते बदलते अचानक से मोबाइल स्क्रीन पर आई रौशनी और टीं-टीं ने उसका ध्यान अपनी और खींचा। अरे! ये क्या दस अन-रीड मैसैजिस? और सारे मैसैजिस रजत के थे।
मैसेज पढ़ते पढ़ते छवि की आँखों में एक बार फिर नमी तैर आई, रजत ने लिखा था "मेरी छवि, मैं जनता हूँ एक बार फिर मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है इन तीन दिनों में बहुत रुलाया ना मैंने? तुम इंतज़ार कर रही होंगी के मैं तुमसे बात करू और कहूँ कि छवि जो तुमने अचानक फैसला ले लिया हम दोनों के अलग हो जाने का वो मुझे मंजूर नहीं, तुम्हे किसने हक दिया कि तुम हम दोनों की जिन्दगी का फैसला अकेले ही कर लो 

          पर मैंने तीन दिन लगा लिए और मैं ये कहना चाहता हूँ कि तुम्हे हक है हम दोनों के लिए कोई भी फैसला अकेले लेने का पर तुम्हारा ये फैसला मैं मान ही नहीं सकता क्यूंकि तुम भी नहीं चाहती कि हम अलग हो जाएँ। मैं चाहता तो उस वक़्त ही तुम्हे जाने से रोक लेता क्यूंकि उस दिन जब मैं तुम्हारा इन्तेजार कर रहा था ना तब उन कुछ खामोश लम्हों ने मुझे मेरा आइना दिखा दिया, मुझे अहसास हुआ कि मैंने इतने वक़्त कितना गलत किया हमारे रिश्ते के साथ तुम इसे जोड़ने के लिए जतन करती रही और मैं अपने ही प्यार का दुश्मन बन बैठा और तुम्हारा दिल दुखाता गया। फिर भी मैं तुमसे माफ़ी नहीं मांगूंगा क्यूंकि माफ़ी काफी नहीं है मेरी गलतियों के लिए, पर एक वादा करता हूँ छवि फिर कभी जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर तुम्हे अकेला नहीं छोडूंगा चाहे वो हम दोनों के बीच की कोई प्रॉब्लम हो या जिन्दगी की कोई भी और परेशानी हो तुम हमेशा मुझे अपने साथ पाओगी। मैं कल तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”

         ये तीन दिनों का इंतज़ार कितना मुश्किल था छवि के लिए ना जाने कितनी ही बार उसे लगा कि सच में उसने रजत को खो दिया, पर अब जैसे एक पल में सब कुछ वापस पहले जैसा हो गया उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो उसने पढ़ा वो सब रजत ने लिखा था, अब उसे रजत पर बहुत प्यार आ रहा था वो उसी पल उड़ के अपने रजत के पास पहुँच जाना चाहती थी पर रजत ने तो कल आने को कहा था और अभी रात के 9 बज गए थे और इस वक़्त 5 km जाना भी ठीक नहीं था, पर जब दिल कोई बात ठान ले तो उसे मानना या रोकना आसान कहां होता है छवि भी अपने दिल के आगे हार गई और सबसे छुप कर अपने होस्टल से किसी तरह बाहर निकली ।

         छवि अभी मेन गेट से 10-15 कदम ही आगे बड़ी होगी के पीछे से किसी ने उसे गुस्से में आवाज़ दी" ये कोई वक़्त है बहार जाने का?" छवि के कदम वही जम गए उसकी हिम्मत ही नहीं हुई पीछे पलट के देखने की जैसे तैसे हिम्मत बटोर के उसने पीछे देखा।

         रजत था छवि हैरानी से उसे देख रही थी, रजत के चेहरे पर शरारती मुस्कान बिखरी थी वो बोला "मुझे पता था तुमसे रहा नहीं जायेगा और तुम अभी ही आओगी, इसलिए मैं ही आ गया" ये सुनते ही छवि के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान बिखर गई और वो रजत से जाकर लिपट गई।


इतनी ही थी ये कहानी……………. 

----Leena Goswami

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