Tuesday, 17 September 2013

इंतज़ार के पल

        मैं नागपाल रेस्ट्रोरेन्ट में छवि का इन्तजार अपने दुसरे कॉफी के कप के साथ कर रहा था, आज पहली बार छवि को देर हुई थी वरना इससे पहले हमेशा मैं ही उसे इन्तजार करवाता था। पर आज मुझे उसका इन्तजार मीठा लग रहा था, आखिर पन्द्रह दिनों से हमारे बीच चल रही ख़ामोशी और नोंक झोंक आज खत्म जो होने वाली थी। मुझे पहले ही पता था कि छवि ने मिलने बुलाया है तो जरुर सुलह करने के लिए ही बुलाया होगा।

        हाँ पर हर बार की तरह इस बार भी गलती मेरी ही थी मैंने ही गुस्से में कुछ ऐसा कह दिया था जो मेरे और छवि के पांच साल के रिश्ते को तोड़ने के लिए काफी था, न जाने क्यूँ हर बार मुझसे ऐसी ही बेवकूफी हो जाती थी, गलती भी मेरी ही होती और लड़ता भी मैं ही था, फिर कुछ ऐसा कह देता जिससे छवि का दिल दुखा देता। लड़ना, दिल दुखाना ये सब मुझे भी पसंद नहीं था आखिर छवि से बहुत प्यार करता था मैं फिर भी जाने मुझे क्या हो जाता कि बार बार उसका दिल दुखा देता और छवि मुझ गधे से फिर भी उतना ही प्यार करती ।

        हमारे बीच आज तक जितने भी झगडे हुए हर बार छवि ने ही अपनी समझदारी से सब कुछ सुलझाया, मेरी गलती का अहसास भी मुझे हमेशा वो ही दिलाती और माफ़ भी कर देती। आज उसके इन्तेजार के इन पलो में मुझे खुदके अंदर झाँकने का मोका मिल रहा था और ये अहसास भी हो रहा था कि छवि ने कितना कुछ किया है हमारे रिश्ते के लिए उसी ने ही हर डोर थामे रखी थी वरना बहुत पहले ही सब कुछ बिखर गया होता ।
अहसास होने के बाद भी अगर मैं बस अपनी गलतियों पर अफ़सोस करके रह जाता तो शायद मुझसे बड़ा बेवकूफ कोई और नहीं होता इसलिए मैंने अब अपनी गलतियों को सुधारने की ठान ली।

       रेस्टोरेंट के बाहर ही एक फ्लावर शॉप थी मैंने वहां से कुछ ओर्चिद्स और रोज लिए और उनका एक खुबसूरत बुके बनवाया । मुझे पता था ये कुछ काम तो जरुर करेंगे । छवि अब तक नहीं आई थी और अब ये इन्तेजार के पल भारी होते जा रहे थे, मैं जल्दी से छवि के सामने अपने घुटनों पे बैठ कर माफ़ी मांगना चाहता था, उससे वादा करना चाहता था फिर मैं कभी उससे दूर जाने की बात नहीं करूँगा । मैं अब उसे खुश रखना चाहता था, जितनी भी गलतियाँ मैंने की थी उससे दुगना प्यार देना चाहता था ।

       रेस्ट्रोरेन्ट का दरवाजा खुला और छवि अंदर आई, जैसे जैसे वो एक एक कदम मेरी ओर बढ़ रही थी मेरी धड़कने भी बढती जा रही थी । आज पहली बार मैं कुछ सही करने जा रहा था और इसलिए ही थोडा डर रहा था कहीं फिर कुछ गलती न कर दूँ । छवि पास आई तो मैंने देखा कि उसकी आँखें लाल थी जैसे रात भर सोई न हो, मुझे खुदपर और गुस्सा आया पर मैंने प्यार से उससे कहा "बैठो छवि मुझसे तुमसे कुछ कहना है"

       छवि की आँखों में अचानक नमी आ गई और उसने कहा "प्लीज रजत पहले मैंने तुम्हे जो कहने के लिए बुलाया है वो सुन लो… मैं तुमसे आज भी उतना ही प्यार करती हूँ जितना हमेशा से करती आई हूँ तुम गलत नहीं हो शायद बुरे भी नहीं हो और शायद मैं भी इतनी बुरी नहीं हूँ फिर भी हमारे पांच सालो के साथ ने हमे सिर्फ बुरी और कडवी यादें ही दी है और मैं चाहे लाख कोशिश कर लूँ पर इसमें मिठास नहीं घोल सकती और अब मैं इस कडवाहट से भी उकता गई हूँ मैंने बहुत सोचा और फिर समझ आया के हम दोनों सही है पर एक साथ सही नहीं है तुम अच्छे हो पर मेरे लिए नहीं बने और मैं तुम्हारे लिए नहीं बनी, इसलिए हम दोनों का अलग हो जाना ही सब कुछ ठीक कर सकता है, मुझे तुमसे अब कोई शिकायत नहीं और उम्मीद करती हूँ तुम भी मेरे अचानक लिए इस फैसले से कोई शिकायत नहीं करोगे" मैं एक टक छवि को देख रहा था और छवि फिर धीरे धीरे चलकर रेस्टोरेंट के गेट के बाहर चली गई।  क्यों ऐसा ही होना था? जब मैं सब कुछ ठीक करना चाहता था तो सब कुछ मेरे हाथ से निकल गया। पर अब अफ़सोस करके मैं बची कुची उम्मीद भी नहीं तोडना चाहता था इसलिए मैंने ठान लिया कि मैं छवि को  अपनी जिन्दगी में वापस लाकर ही रहूँगा, अपनी हर गलती को सुधारूँगा, और एक दिन उसे ये अहसास दिलाकर ही रहूँगा कि वो मेरे लिए कितनी सही है…।



----Leena Goswami

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