Wednesday, 11 September 2013

मेरी डायरी के वो कुछ पन्ने

मेरी डायरी के वो कुछ पन्ने 
जो तुम्हे समर्पित थे,
आज फिर जिन्दा हो गए,
यूँ तो मर चुके थे बहुत पहले ही,

डायरी के वो चंद पन्ने,
तुम कब के फाड़ चुके थे मेरी जिन्दगी से,
बस डायरी में छोड़ गए कुछ
चुबते टुकड़े अपनी यादों के,

वो टुकड़े तुम्हारी यादों के 
जो कभी नाजुक अहसास थे हमारे प्यार के,
अब खंजर बन रोज गढ़ते है सीने में,
और हर रोज़ कुछ जख्म कुरेद देते है
जो अब तक पड़े नासूर थे

 ये लम्हे अब सोंप रही हूँ तुम्हे ही,
भेज रही हूँ ये पन्ने खुरदरे तोहफे में,
जानती हूँ टुकड़े कर दोगे इनके भी मेरे दिल की तरह ही,
पर पढ लोगे शायद, इन्हें फाड़ने से पहले,

तब तुम जानोगे क्या था वो तुमने खो दिया आसानी से जो,
और अब मैं भी सुकून चुरा लुंगी, फाड़ के वो पन्ने 
जो कभी तुम्हे समर्पित थे।

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