Friday, 29 November 2013

प्यार का सफ़र

new story.....
story kesi lagi jarur bataiyega....

प्यार का सफ़र

मेरे अनिकेत, 
बहुत कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे, कुछ दिल में दबा सा है वो बाँटना चाहती हूँ, सोचा था मिलकर करुँगी सारी दिल की बातें पर फिर ख्याल आया कि तुम तो इतना बोलते हो कि मुझे तो कुछ कहने का मोका ही नहीं दोगे ।

अरे! तुम्हे यकीन नहीं हो रहा अभी कल ही की बात ले लो मैंने तुम्हे रेस्टोरंट में कोफ्फी पीने के लिए इसलिए बुलाया था कि मैं तुमसे कुछ कहना चाहती थी पर ना जाने तुमने कहाँ कहाँ की बातें निकाल ली और कोफ्फी के साथ दो - दो समोसे चट कर जाने तक भी तुम्हारी बातें जब ख़त्म नहीं हुई तो मजबूरन मुझे अपनी बातों की पोटली फिर से लाद कर घर आना पड़ा था। इसलिए आज नो रिस्क अब मैं तुम्हें लिखकर दूंगी ताकि फिर से तुम्हारी बक बक में, मेरी बातें अधूरी न रह जाएँ ।

चलो आज शुरू से शुरू करती हूँ। मुझे कॉलेज में आये अभी 5-6 दिन ही हुए थे जब नम्रता तुम्हारी क्लासमेट और मेरी पड़ोसन ने मुझे तुमसे मिलवाया था। यूँ तो वो मुलाकात बहुत फॉर्मल थी पर शायद उस दिन मैं जितने भी नए चेहरों से मिली थी उसमे से घर जाने के बाद मुझे बस तुम्हारा ही चेहरा कुछ कुछ याद था।
कुछ ही दिनों में हमारा बड़ा सा ग्रुप बन गया, साथ बैठे घंटों गप्पे लगाना, साथ खाना, घूमना, बेतुकी बातो पे बड़ी बड़ी शर्त लगा लेना और दिन भर एक दुसरे की खिंचाई करके ठहाके लगाना जैसे दिन की एक अहम् खुराक सी बन गई थी। तब ही से 20 लोगो के हमारे ग्रुप में मुझे तुमसे बात करना ज्यादा अच्छा लगता था, घर आकर भी मैं तुम्हारे फालतू जोक्स पर मुस्कुराया करती थी, बहुत जल्दी हम दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए थे, तुम मुझे बाइक पर घर छोड़ने आते मैं तुम्हारे छोटे मोटे कई काम कर लिया करती पर एक बात पर मैंने खुद भी कभी गौर नहीं किया था कि पहले ही दिन से मेरी तुम्हे लेकर फीलिंग्स और बाकि सारे दोस्तों को लेकर जो फीलिंग्स थी उसमे कुछ अंतर था। फिर ना जाने कब तुमने किस बात पर क्या कहा था ये मुझे अनजाने में ही याद रहने लगा, जैसे दिमाग का कोई बाय डिफ़ॉल्ट फंक्शन हो। मैंने महसूस किया था कि जब तुम कहीं आस पास होते तो मैं चुपके से तुम्हे आँखों के किनारों से देखा करती थी। घर आकर भी तुम्हारा ही ख्याल रहता था, जिस दिन तुम कॉलेज नहीं आते सबके होते हुए भी मैं अकेला सा महसूस करती, हर पल जैसे बोझ लगता, तुमसे ही अपने दिल की हर बात कहने का मन करता, उदास होती तब भी निगाहें सिर्फ तुम्हे ही ढूंढ़ती थी।
पर मैं अपने जज्बातों को लगातार नजरंदाज करती रही, हर दिन खुदसे ही लड़ती समझाती कि तुम बस बहुत अच्छे दोस्त हो और ये जो अलग से अहसास है वो बस आकर्षण है और दो चार दिन में ये भूत भी उतर जायेगा ।

एक दिन हम सब यूँ ही कैंटीन में हर रोज़ की तरह चाय की चुस्कियों के साथ इधर उधर की बातों में मशगूल थे, किसी बात पर हँसते हँसते तुमने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया और तुम्हारा हाथ मेरे सूट के गले में लगी डोरी पर चला गया, और ना जाने किस ख्याल में तुमने उसे खोल दिया, जैसे ही तुमने मुझे, फिर अपने हाथ की ओर देखा तो तुम बुरी तरह झेंप गए थे, पर उस दिन पहली बार मैं खुदको ये मानने से रोक नहीं पाई थी कि कहीं न कहीं तुम्हारी उस शरारत का मुझे एक अरसे से इन्तेजार था |

मेरे अनिकेत,
तुम्हे याद है जुलाई महीने का वो दिन….
बहुत तेज बारिश हो रही थी और तुम मुझे हमेशा की तरह घर छोड़ने चले थे, कितना खुबसूरत समां था ना सब कुछ ताजगी में नहाया लग रहा था। एक ओर बच्चे पानी में नाव चलाकर उसके डूबने पर भी खिलखिला रहे थे और कहीं कोई नया जोड़ा एक ही छत्री में आधे गीले आधे सूखे कदम से कदम मिलाकर चलते अपने प्यार की पहली बारिश को यादगार बना रहे थे । हम भी कहने को तो साथ भीग रहे थे, पर दोनों पर जैसे अलग अलग आसमान बरस रहा हो, तुमपर सिर्फ पानी और मुझपे तुम्हारे लिए प्यार के पहले अहसास भी शामिल थे उन बूंदों में, यां शायद तुम पर भी वही अहसासों की बुँदे गिरी हो कौन जाने, मेरे मन में दबे जज्बातों ने फिर से जंग छेड़ दी और इस बार मैं उनसे हार गई। मैं थक गई थी खुदको तुमसे दूर करते करते इस सच से इनकार करते करते की तुम सिर्फ मेरे दोस्त नहीं हो, मैं अब बस उस वक़्त को वहीँ रोक देना चाहती थी, तुम्हारे साथ उस बारिश की हर बूँद के अहसास को अपने मन में बसा लेना चाहती थी तुम्हारे साथ एक ही छत्री के नीचे आधा भीगना चाहती थी, तुम्हारे साथ हमारे प्यार की पहली बारिश में तुमसे कह देना चाहती थी की मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम्हारे साथ कुछ नए सपने देखना चाहती थी, उस आधे घंटे के छोटे से सफ़र में कितना पास आ गई थी मैं तुम्हारे कितनी ही बार मेरे दिल ने कहा कि तुम्हे कस के थाम लूँ कितनी ही बार मैं तुम्हे अपने दिल की बात बस कहते कहते रुक गई थी।
यूँ हमेशा बक बक करने वाले तुमने कभी कहा नहीं था के मैं तुम्हारे लिए हूँ क्या, सिर्फ दोस्त या दोस्त से कुछ ज्यादा या फिर वो जो तुम मेरे लिए बन गए थे। पर बिन कहे सुने भी इतना तो जान लिया था की कुछ तो था तुम्हारे मन में भी, वरना क्यूँ तुम मुझपे हक जमाते, मेरे नाराज होने पर परेशान होते, मुझे मनाने के सारे मुमकिन पेंतरे आजमा लेते। घंटो मुझसे अपने दिल की हर बात कहते और मेरे दिल की बात अक्सर बिन कहे ही समझ लेते |

और उस दिन जब हम सब फिल्म देखने गए थे....
तुमने फिल्म हॉल के अन्धेरें में मेरा हाथ चुपके से पकड़ लिया था और जब मैंने हाथ छुड़वाने की कोशिश की तो तुमने अपना हाथ और कस लिया था, उस पल फिल्म हॉल की वो कई छोटे छोटे बल्बों की क़तार से सजी छत मुझे सितारों से भरा आसमान लग रही थी और हम उस आसमान के नीचे हाथ थामे एक अलग ही भाषा में बात कर रहे थे, स्पर्श की भाषा।
मैं हाथ छुड़वाने लगी तो -
तुमने कहा- “मैंने ये हाथ छोड़ने के लिए नहीं थामा संध्या”
मैंने कहा- “उम्र भर थाम पाओगे?”
तुमने कहा- “अगर तुम साथ दोगी तो”
मैंने जवाब में अपना सर तुम्हारे कंधे पर रख दिया।
हाँ वो प्यार ही था पर उसे बयां करने के लिए शब्दों की दरकार नहीं थी, उसने खुद ही अपनी एक अलग भाषा बना ली थी। कभी आँखे घंटो बातें करती तो दिल ख़ामोशी से सुनता और होंट जवाब में मुस्कुरा देते।

मेरे अनिकेत,
मैंने एक साल में खुदको बहुत बदलते देखा, अपने ही दायरों के पेड़ से मैं एक पत्ते की तरह अलग हो गई थी और तुम हवा की तरह जहाँ बहते, वहीँ मैं भी तुम्हारे साथ बहने लगी थी उड़ने लगी थी जिस भी दिशा तुम ले जाते वो मुझे अपनी सी लगती वहीँ अपना आशियाना बना लेती |
प्यार में ऐसा ही होता है ना दो लोग जाने कब इतना जुड़ जाते है की किसी एक का रास्ता दुसरे की मंजिल बन जाता है, एक की चाहत दुरसे का मकसद । तुम्हारे साथ इस नए सफ़र में मैं इतना खो गयी कि ये भूल ही गयी थी कि दूर से बेहद खुबसूरत लगने वाले इस रास्ते पर कई इम्तेहानो के कांटे भी हमारा इन्तेजार कर रहे थे |
उस दिन तुम कॉलेज नहीं आये थे मैं और नम्रता कॉलेज केन्टीन में बैठे चाय के साथ कुछ असाइनमेंट डिस्कस कर रहे थे तभी सामने से आ रही एक लड़की को देखकर नम्रता ने चहकते हुए कहा "अरे! शेफाली तुम? कब आई दिल्ली से, कितने दिन हो यहाँ"
शेफाली- "परसों रात को ही आई और इस बार पूरे एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आई हूँ”
"Oh great !”
फिर नम्रता ने मेरा भी शेफाली के साथ इंट्रोडक्शन करवाया और वो एक बार फिर शेफाली से बात करने में मशगूल हो गई-
"और बताओ तुम्हारा और तुम्हारे हीरो का कैसा चल रहा है ?"
शेफाली बोली- "बहुत अच्छा चल रहा है अभी कल ही तो अनिकेत मुझे फिल्म दिखाने ले गए थे, उसके बाद डिनर फिर लॉन्ग ड्राइव..."
शेफाली बोले जा रही थी पर मेरा दिमाग एक ही शब्द पर अटका हुआ था - 'अनिकेत'
मुझसे रहा नहीं गया और मैं बीच में ही टोकती हुई पूछ बैठी ।
"कौन अनिकेत?”
नम्रता ने जो जवाब दिया उससे एक पल में सब कुछ बदल गया। तुम तो जानते ही हो उसने क्या कहा होगा। उसने कहा -"अरे! अपना अनिकेत, तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड, सारा कॉलेज जानता है तुम्हे कैसे नहीं पता शेफाली अनिकेत की गर्लफ्रेंड है"

मेरे अनिकेत,
उस एक पल में जिंदगी ने ऐसे मुंह मोड़ लिया जैसे बरसो की नाराजगी की सजा एक ही बार में दे देना चाहती हो।
हजारो सवाल एक साथ दिमाग में चल रहे थे।
जो रिश्ता मेरे और तुम्हारे बीच था क्या था वो?
क्या कोई रिश्ता था भी हमारे बीच?
जो तुमने आँखों की भाषा में कहा था मुझसे क्या वो तुमने सच में कहा था या वो बस मेरे मन की ही उपज थी अपना दिल बहलाने के लिए?
क्या जो भी मुझे महसूस हुआ वो सब जूठ था ?
क्यूँ आखिर तुमने मुझे शेफाली के बारे में नहीं बताया था?
मेरे पास किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था
कुछ सवालो के जवाब तो तुम जरुर दे पाते पर अब मुझमे ही जवाब सुनने की हिम्मत नहीं थी क्यूंकि सच तो आँखों के सामने ही था | जब अगले दिन तुम आये तो बिलकुल हमेशा की तरह ही मिले यहाँ तक की शेफाली को देखकर भी तुम्हारे चेहरे पर कोई भाव ही नहीं आये, जैसे तुम्हे मेरे और शेफाली के एक ही जगह एक साथ होने से कुछ फरक ही न पड़ता हो।
मुझे गुस्सा आ रहा था खुद पर भी और तुम पर भी क्यों विश्वास किया मैंने तुमपर कई बार जी में आया कि तुमसे बहुत लडूं कि तुमने क्यूँ मुझे शेफाली के बारे में पहले नहीं बताया, क्यूँ मुझे खुदके इतना करीब आने दिया। पर फिर होश आया कि किस हक से तुमसे कहूँ ये सब, मैं थी ही कौन तुम्हारी।
मैंने अपने कदम पीछे लेने का फैसला कर दिया था, तुमसे हर मुनासिब दूरी बनाने का फैसला कर लिया था। पर सिर्फ मैं ही जानती हूँ, कितना मुश्किल था तुम्हारे सामने रहकर खुदको तुमसे प्यार करने से रोकना। कितना मुश्किल था जब तुम मुझे देखकर मुस्कुराते थे उस वक़्त अपने दिल को तेज धड़कने से रोकना । कितना मुश्किल था जब तुम मेरा हाथ पकड़ते थे और मेरा खुदको ये चाहने से रोकना कि ये हाथ तुम हमेशा के लिए थाम लो, कितना मुश्किल था खुदको बेख्याली में तुम्हारा नाम किसी नोटबुक पर लिखने से रोकना, कितना मुश्किल था खुदको रात भर तुम्हे बिना पाए ही खो देने के दर्द में आंसू बहाने से रोकना और सबसे ज्यादा मुश्किल था तुम्हे शेफाली के आस पास भी देखना।
नफरत करना चाहती थी मैं तुमसे पर तुम्हे प्यार करने से भी खुदको रोक नहीं पा रही थी, कैसे अचानक से सिर्फ तुम्हारी दोस्त बन जाती?

उस दिन कॉलेज के बाद जब मैं तुम्हारी बाइक के पीछे बैठ ही रही थी कि शेफाली आ गई और उसने कहा "प्लीज अनिकेत आज मुझे घर ड्राप कर दो मुझे कहीं जाना है और मुझे लेट हो रही है" तुम कहते तो शायद मैं बर्दाश नहीं कर पाती इसलिए खुद ही उतर गई और तुमसे कहा कि मैं टेक्सी ले लूंगी,जिस तरह शेफाली तुम्हारे इतना करीब बैठी थी उसे देख पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं था उस दिन जाना था जलन किस चिड़िया का नाम है घर आकर मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं फूट फूट के रोने लगी ।
रोना भी कभी कभी बहुत जरुरी हो जाता है आँखों के साथ मन भी कुछ साफ हो जाता है, मेरा मन भी कुछ हल्का महसूस कर रहा था फिर अचानक मुझे याद आया कि
जिस दिन का शेफाली ने जिक्र किया था कि वो तुम्हारे साथ फिल्म देखने फिर डिनर और लॉन्ग ड्राइव गई थी उस दिन तो तुम मेरे घर थे।
तो क्या शेफाली सब कुछ जूठ बोल रही थी?
मेरे अनिकेत,
इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई मुझसे मैंने यूँ ही शेफाली की बातो पर यकीन कर लिया, वो तो शक्ल से ही जूठी लग रही थी मैंने दूसरे दिन सुबह उठते ही शेफाली को फोन करके पार्क मिलने बुलाया और वही उसपे धावा बोल दिया और घमकी भी दी कि अबकी बार भी जूठ बोला तो सारे कॉलेज में क्या शहर में बदनामी करवा दूंगी। मजबूरन उसे सच बताना ही पड़ा कि जब वो कॉलेज में थी उसकी सारी फ्रेंड्स के बॉय फ्रेंड्स थे बस वो ही इस मामले में पीछे रह गई थी तो उसने अपने जूनियर यानि तुम्हे फसाया और सारे कॉलेज में ढिंढोरा पीट लिया की वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड है और तुम्हे अपने आंसुओ से बेवकूफ बनाया की तुम किसी को सच ना बताओ की वो सिर्फ दोस्त है तुम्हारी और वो जब कॉलेज के साथ साथ शहर भी छोड़ के गई तो तुम्हे लगा की अब ये जूठ भी ख़त्म और तुम इस पूरे मामले को भूल ही गए।
मुझे फिर से तुम पर बहुत गुस्सा आया कि तुमने मुझे पूरा झमेला बताया क्यों नहीं, वैसे तो तुम्हे चुप करवाना मुश्किल हो जाता है पर जहाँ तुम्हे बोलना चाहिए वहां मुह नहीं खुलता तुम्हारा। फिजूल इतना नुकसान करवा दिया।
मैंने पापा से ली उनकी फेवरेट रफ़ी साहब के दर्द भरे गानो की cd सुन सुन के घस ली थी, रोज़ रात रो रो के आँखे सुजा ली थी और उसके बाद पता पड़ता है कि इतने दिन का ये बेवफाई का मातम बेकार था, शेफाली तो तुम्हारी गर्लफ्रेंड थी ही नहीं कभी।
मैं सीधा कॉलेज गई तुम्हारी खबर लेने पर शेफाली वहां मुझसे पहले ही पहुँच गई और तुम्हे सब कुछ बता दिया और तुम जान बूझ के खाली कमरे में छुप कर बैठ गए और जैसे ही मैंने तुमपर चिल्लाना शुरू किया तुमने अपना ट्रम्प कार्ड चल ही दिया।
तुम मेरे पास आये मेरा हाथ थामा और मेरी आँखों में आँखे डालकर कुछ देर यूँ ही देखते रहे आज फिर एक अरसे के बाद हम खामोश थे पर हमारी आँखों ने ढेर सारी बातें कर ली, तुमने कहा "बहुत परेशान कर दिया ना तुमको प्लीज मुझे माफ़ कर दो"
मैंने कहा "गलती इतनी बड़ी है तो सजा तो मिलेगी"
तुमने कहा "तुमारी हर सजा मंजूर है मुझे"
मैंने कहा "जिन्दगी भर इस सरफिरी को झेलना पड़ेगा"
तुमने कहा "इस सरफिरी का सर्फिरापन भी सर आँखों पर"
फिर तुम कुछ और कहने लगे और मैं गुस्सा हो गई और मैंने कहा "ये भी आँखों आँखों में ही कहोगे? मेरे कान कब से तरस रहे है"
और तुम समझ गए और तुमने पहली बार अपने मुह से कहा "I love you Sandhya" और मैं बस मुस्कुरा दी |

मेरे अनिकेत,
कॉलेज के उस दिन से लेकर आज तक हमारे प्यार ने कितने उतार चढाव देखे, तुम्हारा ऑस्ट्रेलिया जाकर पड़ने का सपना था और मैं चाहती थी कि तुम यहीं इंडिया में ही रहो, कितना लड़ी थी मैं तुमसे पर कितना प्यार से मना लिया था तुमने मुझे ।
फिर तुम आये तुम्हे अच्छी नोकरी भी मिल गई पर मेरे पापा हम दोनों की जाति अलग होने के कारन शादी के लिए नहीं माने, उन्हें मनाते मनाते थक गई थी मैं और मैंने कहा भी था तुमसे के भाग चलते है पर तुम नहीं माने तुम मुझे हमेशा खुश रखना चाहते थे और जानते थे की अपने परिवार को नाराज करके मैं तुम्हारे साथ ज्यादा दिन खुश नहीं रह पाऊँगी। तब भी तुम्ही ने संभाल लिया था सब कुछ |
मेरे पापा के कई बार तुम्हे बेइज्जत करके घर से निकालने के बाद भी तुमने हार नहीं मानी, कभी तुम नाराज नहीं हुए उनकी इस बेरुखी पर, उस दिन जब फिर पापा ने तुम्हारी बात सुने बिना ही तुम्हे चले जाने को कह दिया था मैं बहुत रोई थी और फिर भागकर शादी करने की जिद्द पर अड़ गई पर उस दिन भी तुम्ही ने मुझे समझाया की "तुम्हारे पापा तुमसे बहुत प्यार करते है इसलिए ही मेरा तुम्हारे लिए प्यार और सब्र का इम्तेहान ले रहे है यूँ दरवाजा बंद करते करते एक न एक दिन उन्हें अहसास हो जायेगा की "
और तुम सही भी थे एक दिन वो दरवाजा खुल ही गया हमारे प्यार के लिए |
तुमने हर कदम पर कितना साथ दिया मेरा कभी सोचा नहीं था की इतना बोलने वाले तुम इतने संजीदा भी होंगे इतनी समझदारी से हमारे प्यार के इस सफ़र को इतना हसीन बना दोगे।
मैं आज ये सब इसलिए कह रही हूँ अनिकेत की मैंने कभी तुम्हे अपने जज्बात शब्दों में जाहिर नहीं किये कभी तुमसे ये नहीं कहा की मैं तुम्हे पागलों की तरह चाहती हूँ, तुम्हारे बिना एक पल भी सजा लगती है मुझे, हर गुजरते दिन के साथ मेरा तुम्हारे लिए प्यार और सम्मान बढता ही जाता है तुम्हारे साथ ही मैंने रिश्तो को और गहराई से समझा है, तुम्हारे साथ ही मैंने जाना है के अपनों के साथ चलकर काँटों भरा रास्ता भी महकता चमन लगता है।
कल जब हमारी शादी हो जाएगी तब भी तुम यूँ ही मेरा हाथ थामे रखना और हम दोनों प्यार के इस सफ़र में नई नई मंजिलें पार करते रहेंगे ।


तुम्हारी,
संध्या

व्यंग- पकोड़े पर बवाल

aap sab ko batate hue behad khushi ho rahi hai ki mera likha vyang ek patrika "Alfaz Today" me prakashit hua hai....

Thursday, 14 November 2013


maf karna par main sabki tarah aaj bal diwas ki juthi bhadai nahi dena chahti..
hum har roz apne charo or na jaane kitne chote chote bachon ko kam karta dekhte hai or kuch nahi karte...fir bal shram ke virudh kisi raili me shamil hokar apni tasveer akhbar me chapwate waqt sabse aage khade ho jate hai...

apne bacho par apni umeedo, apne sapno or apni soch ka itna bojh dal dete hai ki bacho ka apna astitva, apni soch samjh, unka vyaktitva hi dam todne lagti hai or fir unhe mahanga mobile, laptop ya fir pizza burger dilakar garv se logo ke bich bacho ke adhikaro per bahas karte hai.......

maf karna per is tarah hume bal diwas na hi manayen ka adhikaar hai or na hi is bat per charcha karna bhi thik rahega..

Wednesday, 2 October 2013

रेत का आशियाना



तुम्हे याद है 

बरसात की वो शाम 
बादल भी बरस कर 
कुछ सुस्ता रहे थे
और हम तुम 
आँगन में बैठे 
चाय पी रहे थे

आँगन में रेत थी 
मरम्मत के लिए 
और तुम उसे देख 
बच्ची बन गई

तुमने मेरे हाथ पर 
रेत थपक थपक कर 
एक छोटा घर बनाया

और फिर उसे कुछ
तिनको, सूखी पत्तियों
और छोटे पत्थरों से

शिद्दत से सजाया

आज भी मैंने 
दिल के एक कोने में 
संभाल कर रखा है 
वो पहला आशियाना 
हमारे प्यार का….

Monday, 30 September 2013

फुर्सत के कुछ पल


आज कुछ पल खुद के साथ जो बिताये तो लगा,जैसे अब तक खुदसे अनजान थी मैं,बढ तो रहे थे कदम पर नहीं जानती थीकिसकी पहचान थी मैं,
अब जो कुछ पल रुकी तो अहसास हुआ,कहाँ  जाना था कहाँ से आई थी मैं,
पीछे मुड़कर उन रास्तो को देखा तोकुछ ख़ुशी का अहसास हुआशायद इसलिए कि उन रास्तो पेकुछ यादें थी कुछ बीती बातें थीया शायद जो कुछ पाया थाउस पर नाज कर रही थी मैं,
एक पल को लगा बहुत आगे बढ चुकीअब कुछ आराम करूँ जो छुट चुकी हैजिन्दगी उसे नया आयाम दूँ,इन पलो में जो सिमट गई है जीवन की खुशियाँउन्हें ही मैं अपनी मंजिल बना दूँ,छोड़ दूँ ये गर्दिशो के रास्ते,इन यादों के इन बीती बातों केसहारे ही अपना जीवन बिता दूँ।
फिर लगा अरे! ये किस सोच में डूब गई मैं,ये ही तो इन्सान की फितरत हैजो पा लिया उसका शुक्र नहींजो नामुमकिन है उसी की चाहत है,फिर समझाया भी मन को,ये गुजरे पल गुजरे रहें तभी खुशियाँ देंगेइन्हें पा लिया तो फिर नई चाहत उठ जायेगी,
और फिर एक बार मैं चलने को तैयार हो उठीमन में उन यादों को समेट करएक ऐसे रस्ते पे जो न जाने कब ख़त्म हो।





Sunday, 29 September 2013

इंतज़ार के पल पार्ट -2

                       शाम गहरा गई थी, खिड़की से बारिश की हलकी हलकी बुँदे छवि के चेहरे और हाथों पर इधर उधर बिखर रही थी, छवि किसी सोच में डूबी हुई थी उसे ये अहसास ही नहीं हुआ कि यूँ खिड़की पर खड़े उसे अपनी और रजत की यादों में खोये हुए पूरा एक घंटा हो गया था, यूँ भी ध्यान कहीं और हो तो वक़्त का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है ।

          कुछ सोच कर छवि के आखों से आंसू की इक बूंद छलक गई पर बारिश की बूंदों ने उस बूंद को खुदमे समेट लिया और उसके साथ बह गई, जैसे उस बारिश को भी छवि का यूँ कमजोर पड़ना गवारा नहीं था। सच में बहुत कमजोर पड़ गई थी छवि इन तीन दिनों में ही रजत से उस दिन रिश्ता तोड़ कर तो आ गई थी पर तब से लेकर इन तीन दिनों में एक पल ऐसा नहीं था जब रजत की याद ने उसे रोने पर मजबूर न किया हो। कितनी ही बार उसने खुदको ही कोसा था के "इस बार भी तू ही बात संभाल लेती तो क्या बिगड़ जाता? जिस इंसान के बगैर  एक पल भी बोझ लग रहा है उसे हमेशा के लिए खो दिया तूने । प्यार में हर चीज़ बराबरी की ही हो जरुरी तो नहीं ना अगर रजत का गुस्सा तेज है, उसे बिगड़ी बातों को बनाना नहीं आता तो बस इसलिए तू उसे छोड़ कर आ गई? उसका प्यार, परवाह, साथ ये सब इन छोटी छोटी बातों के आगे हार गया?" छवि को खुदपर ही बहुत गुस्सा आ रहा था ।

          आज उसे रजत के साथ बिताये सारे अच्छे पल याद आ रहे थे, उसे याद आया के एक बार जब कॉलेज में बेटमिंटन के मैच के दौरान गिरने से उसके पैर में मोच आ गई थी और उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था तब रजत उसे किसी की परवाह किये बिना सबके सामने से गोद में उठाकर कॉलेज क्लिनिक तक ले गया था, कितना शर्मा गई थी छवि उस वक़्त|
छवि निढाल सी बिस्तर पर लेट गई पर नींद का एक रेशा भी उसकी आँखों में नहीं था, कुछ देर करवटे बदलते बदलते अचानक से मोबाइल स्क्रीन पर आई रौशनी और टीं-टीं ने उसका ध्यान अपनी और खींचा। अरे! ये क्या दस अन-रीड मैसैजिस? और सारे मैसैजिस रजत के थे।
मैसेज पढ़ते पढ़ते छवि की आँखों में एक बार फिर नमी तैर आई, रजत ने लिखा था "मेरी छवि, मैं जनता हूँ एक बार फिर मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है इन तीन दिनों में बहुत रुलाया ना मैंने? तुम इंतज़ार कर रही होंगी के मैं तुमसे बात करू और कहूँ कि छवि जो तुमने अचानक फैसला ले लिया हम दोनों के अलग हो जाने का वो मुझे मंजूर नहीं, तुम्हे किसने हक दिया कि तुम हम दोनों की जिन्दगी का फैसला अकेले ही कर लो 

          पर मैंने तीन दिन लगा लिए और मैं ये कहना चाहता हूँ कि तुम्हे हक है हम दोनों के लिए कोई भी फैसला अकेले लेने का पर तुम्हारा ये फैसला मैं मान ही नहीं सकता क्यूंकि तुम भी नहीं चाहती कि हम अलग हो जाएँ। मैं चाहता तो उस वक़्त ही तुम्हे जाने से रोक लेता क्यूंकि उस दिन जब मैं तुम्हारा इन्तेजार कर रहा था ना तब उन कुछ खामोश लम्हों ने मुझे मेरा आइना दिखा दिया, मुझे अहसास हुआ कि मैंने इतने वक़्त कितना गलत किया हमारे रिश्ते के साथ तुम इसे जोड़ने के लिए जतन करती रही और मैं अपने ही प्यार का दुश्मन बन बैठा और तुम्हारा दिल दुखाता गया। फिर भी मैं तुमसे माफ़ी नहीं मांगूंगा क्यूंकि माफ़ी काफी नहीं है मेरी गलतियों के लिए, पर एक वादा करता हूँ छवि फिर कभी जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर तुम्हे अकेला नहीं छोडूंगा चाहे वो हम दोनों के बीच की कोई प्रॉब्लम हो या जिन्दगी की कोई भी और परेशानी हो तुम हमेशा मुझे अपने साथ पाओगी। मैं कल तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”

         ये तीन दिनों का इंतज़ार कितना मुश्किल था छवि के लिए ना जाने कितनी ही बार उसे लगा कि सच में उसने रजत को खो दिया, पर अब जैसे एक पल में सब कुछ वापस पहले जैसा हो गया उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो उसने पढ़ा वो सब रजत ने लिखा था, अब उसे रजत पर बहुत प्यार आ रहा था वो उसी पल उड़ के अपने रजत के पास पहुँच जाना चाहती थी पर रजत ने तो कल आने को कहा था और अभी रात के 9 बज गए थे और इस वक़्त 5 km जाना भी ठीक नहीं था, पर जब दिल कोई बात ठान ले तो उसे मानना या रोकना आसान कहां होता है छवि भी अपने दिल के आगे हार गई और सबसे छुप कर अपने होस्टल से किसी तरह बाहर निकली ।

         छवि अभी मेन गेट से 10-15 कदम ही आगे बड़ी होगी के पीछे से किसी ने उसे गुस्से में आवाज़ दी" ये कोई वक़्त है बहार जाने का?" छवि के कदम वही जम गए उसकी हिम्मत ही नहीं हुई पीछे पलट के देखने की जैसे तैसे हिम्मत बटोर के उसने पीछे देखा।

         रजत था छवि हैरानी से उसे देख रही थी, रजत के चेहरे पर शरारती मुस्कान बिखरी थी वो बोला "मुझे पता था तुमसे रहा नहीं जायेगा और तुम अभी ही आओगी, इसलिए मैं ही आ गया" ये सुनते ही छवि के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान बिखर गई और वो रजत से जाकर लिपट गई।


इतनी ही थी ये कहानी……………. 

----Leena Goswami

Tuesday, 17 September 2013

इंतज़ार के पल

        मैं नागपाल रेस्ट्रोरेन्ट में छवि का इन्तजार अपने दुसरे कॉफी के कप के साथ कर रहा था, आज पहली बार छवि को देर हुई थी वरना इससे पहले हमेशा मैं ही उसे इन्तजार करवाता था। पर आज मुझे उसका इन्तजार मीठा लग रहा था, आखिर पन्द्रह दिनों से हमारे बीच चल रही ख़ामोशी और नोंक झोंक आज खत्म जो होने वाली थी। मुझे पहले ही पता था कि छवि ने मिलने बुलाया है तो जरुर सुलह करने के लिए ही बुलाया होगा।

        हाँ पर हर बार की तरह इस बार भी गलती मेरी ही थी मैंने ही गुस्से में कुछ ऐसा कह दिया था जो मेरे और छवि के पांच साल के रिश्ते को तोड़ने के लिए काफी था, न जाने क्यूँ हर बार मुझसे ऐसी ही बेवकूफी हो जाती थी, गलती भी मेरी ही होती और लड़ता भी मैं ही था, फिर कुछ ऐसा कह देता जिससे छवि का दिल दुखा देता। लड़ना, दिल दुखाना ये सब मुझे भी पसंद नहीं था आखिर छवि से बहुत प्यार करता था मैं फिर भी जाने मुझे क्या हो जाता कि बार बार उसका दिल दुखा देता और छवि मुझ गधे से फिर भी उतना ही प्यार करती ।

        हमारे बीच आज तक जितने भी झगडे हुए हर बार छवि ने ही अपनी समझदारी से सब कुछ सुलझाया, मेरी गलती का अहसास भी मुझे हमेशा वो ही दिलाती और माफ़ भी कर देती। आज उसके इन्तेजार के इन पलो में मुझे खुदके अंदर झाँकने का मोका मिल रहा था और ये अहसास भी हो रहा था कि छवि ने कितना कुछ किया है हमारे रिश्ते के लिए उसी ने ही हर डोर थामे रखी थी वरना बहुत पहले ही सब कुछ बिखर गया होता ।
अहसास होने के बाद भी अगर मैं बस अपनी गलतियों पर अफ़सोस करके रह जाता तो शायद मुझसे बड़ा बेवकूफ कोई और नहीं होता इसलिए मैंने अब अपनी गलतियों को सुधारने की ठान ली।

       रेस्टोरेंट के बाहर ही एक फ्लावर शॉप थी मैंने वहां से कुछ ओर्चिद्स और रोज लिए और उनका एक खुबसूरत बुके बनवाया । मुझे पता था ये कुछ काम तो जरुर करेंगे । छवि अब तक नहीं आई थी और अब ये इन्तेजार के पल भारी होते जा रहे थे, मैं जल्दी से छवि के सामने अपने घुटनों पे बैठ कर माफ़ी मांगना चाहता था, उससे वादा करना चाहता था फिर मैं कभी उससे दूर जाने की बात नहीं करूँगा । मैं अब उसे खुश रखना चाहता था, जितनी भी गलतियाँ मैंने की थी उससे दुगना प्यार देना चाहता था ।

       रेस्ट्रोरेन्ट का दरवाजा खुला और छवि अंदर आई, जैसे जैसे वो एक एक कदम मेरी ओर बढ़ रही थी मेरी धड़कने भी बढती जा रही थी । आज पहली बार मैं कुछ सही करने जा रहा था और इसलिए ही थोडा डर रहा था कहीं फिर कुछ गलती न कर दूँ । छवि पास आई तो मैंने देखा कि उसकी आँखें लाल थी जैसे रात भर सोई न हो, मुझे खुदपर और गुस्सा आया पर मैंने प्यार से उससे कहा "बैठो छवि मुझसे तुमसे कुछ कहना है"

       छवि की आँखों में अचानक नमी आ गई और उसने कहा "प्लीज रजत पहले मैंने तुम्हे जो कहने के लिए बुलाया है वो सुन लो… मैं तुमसे आज भी उतना ही प्यार करती हूँ जितना हमेशा से करती आई हूँ तुम गलत नहीं हो शायद बुरे भी नहीं हो और शायद मैं भी इतनी बुरी नहीं हूँ फिर भी हमारे पांच सालो के साथ ने हमे सिर्फ बुरी और कडवी यादें ही दी है और मैं चाहे लाख कोशिश कर लूँ पर इसमें मिठास नहीं घोल सकती और अब मैं इस कडवाहट से भी उकता गई हूँ मैंने बहुत सोचा और फिर समझ आया के हम दोनों सही है पर एक साथ सही नहीं है तुम अच्छे हो पर मेरे लिए नहीं बने और मैं तुम्हारे लिए नहीं बनी, इसलिए हम दोनों का अलग हो जाना ही सब कुछ ठीक कर सकता है, मुझे तुमसे अब कोई शिकायत नहीं और उम्मीद करती हूँ तुम भी मेरे अचानक लिए इस फैसले से कोई शिकायत नहीं करोगे" मैं एक टक छवि को देख रहा था और छवि फिर धीरे धीरे चलकर रेस्टोरेंट के गेट के बाहर चली गई।  क्यों ऐसा ही होना था? जब मैं सब कुछ ठीक करना चाहता था तो सब कुछ मेरे हाथ से निकल गया। पर अब अफ़सोस करके मैं बची कुची उम्मीद भी नहीं तोडना चाहता था इसलिए मैंने ठान लिया कि मैं छवि को  अपनी जिन्दगी में वापस लाकर ही रहूँगा, अपनी हर गलती को सुधारूँगा, और एक दिन उसे ये अहसास दिलाकर ही रहूँगा कि वो मेरे लिए कितनी सही है…।



----Leena Goswami

Sunday, 15 September 2013

मेरी नन्ही परी

वो टिमटिमाती आँखें
जैसे सच्चाई का अक्स लिए,
वो निश्छल मुस्कान,
जैसे जन्नत की खूबसूरती खुद में समेटे,
वो मासूम चेहरा
जैसे निस्वार्थ, खुदा की नेमत बिखेरता,
बिलकुल ऐसा ही अनोखा रूप था
जब मेरी नन्ही परी इस दुनिया में आई थी …….

Wednesday, 11 September 2013

मेरी डायरी के वो कुछ पन्ने

मेरी डायरी के वो कुछ पन्ने 
जो तुम्हे समर्पित थे,
आज फिर जिन्दा हो गए,
यूँ तो मर चुके थे बहुत पहले ही,

डायरी के वो चंद पन्ने,
तुम कब के फाड़ चुके थे मेरी जिन्दगी से,
बस डायरी में छोड़ गए कुछ
चुबते टुकड़े अपनी यादों के,

वो टुकड़े तुम्हारी यादों के 
जो कभी नाजुक अहसास थे हमारे प्यार के,
अब खंजर बन रोज गढ़ते है सीने में,
और हर रोज़ कुछ जख्म कुरेद देते है
जो अब तक पड़े नासूर थे

 ये लम्हे अब सोंप रही हूँ तुम्हे ही,
भेज रही हूँ ये पन्ने खुरदरे तोहफे में,
जानती हूँ टुकड़े कर दोगे इनके भी मेरे दिल की तरह ही,
पर पढ लोगे शायद, इन्हें फाड़ने से पहले,

तब तुम जानोगे क्या था वो तुमने खो दिया आसानी से जो,
और अब मैं भी सुकून चुरा लुंगी, फाड़ के वो पन्ने 
जो कभी तुम्हे समर्पित थे।

Friday, 6 September 2013

कल्पना

चाहे थी वो एक कल्पना,पर बड़ी सुहानी थी वो कल्पना,
ना दुःख का था कोई साया बस खुशियों की शजर थी वो कल्पना,
हर तरफ सुख की खुशबू थी, बस फूलों सी महकती थी वो कल्पना,
हर जख्म से दूर हर दर्द से परे बस एक मलहम थी वो कल्पना,
हर मतलब से दूर हर बुराई से परे, बस एक अच्छाई थी वो कल्पना,
हर सुबह में ताजगी हर शाम में उम्मीद, हर रात सुकून भरी, कुछ ऐसी थी वो कल्पना।
चाहे सच्चाई से थी कोसों दूर पर मेरी ही परछाई थी वो कल्पना,
अब बस सोचती हूँ काश हकीकत भी कुछ वैसी ही होती,
जैसी थी वो कल्पना ……


Sunday, 25 August 2013

तुम में बहुत से तुम रहते हो.....

तुम में बहुत से तुम रहते हो,
कभी धुंधली शाम के चाँद जैसे,
कभी तडके की अलसाई अंगड़ाई जैसे,
कोई कोना है तुममे जो नाराज है पूरी दुनिया से,
कोई शख्स है तुमने हँसता है खुदाई जैसे।

Tuesday, 20 August 2013

जिसने थामा वहीँ ठहर गये.....

अपने ख्वाबों की लाशों पर से हम गुजरते चले गए,क्या बताएं क़िस्मत के हाथों हम कैसे बिखरते चले गए।


जिन्हें नसीब हो रहमत-ए-खुदा वो बदनसीबी क्या जाने,कोई पूछे उनसे जो एक कतरा मुस्कराहट के लिएआरजू-ए-समंदर निगल गए।

कैद थे कुछ जज्बात दिल के इक रोशन टुकड़े में,एक सर्द हवा जो आई तो वो पन्ने भी ठिठुर गये।

बहकता तूफान भी ढूंढ़ता है शांत सुनसान रस्ते,हम तो फिर भी इंसान थे जिसने थामा वहीँ ठहर गये।

Friday, 19 July 2013

बस यूँ ही...

आज पहली दफा एक दोस्त ने पूछा,
इतने ग़मगीन क्यों नजर आते हो?

मैंने एक ठंडी आह भरी,

और स्मृतियों से कोई एक मुक्कमल वजह
तलाशने की नाकाम कोशिश की,

फिर दिल में चुभे तीरों की ओर झांक कर
सबसे गहरे चुभे तीर को चुनने की कोशिश की,

फिर कुछ सोच कर,

न जाने कितने टूटे सपनो की चुभन
सहते सहते पीली पड़ गई आँखों को मसला,

ओर बेलब्ज ही सिल चुके होंठो पर,
बेजान जबान फेरते हुए कहा..

कुछ नहीं यार बस यूँ ही..... 

Thursday, 18 July 2013

उनकी मुस्कराहट....

मेरे दिल की गहराइयों कोछु जाती है उनकी मुस्कराहट,


मेरा हर अश्क पी जाती हैउनकी मुस्कराहट,

जिन्दगी का साथ हम कैसे छोड़ दें,हर रोज जीना सिखाती है उनकी मुस्कराहट,

शहद सी घुल के मेरे कानो मेंसुकून बन के छलक जाती है,

उनकी मुस्कराहट....



Wednesday, 17 July 2013

उडान

मुश्किलों के कोहरे को चीर कर,
अन्धेरों से रौशनी का कतरा छीन कर,
अपना मुकाम बनाना चाहती हूँ,
सितारों पे अपना नाम लिखना चाहती हूँ,
मैं एक ऊँची उडान भरना चाहती हूँ।

वक्त के जलजलो को मैंने भी देखा है,
काँटों की चुभन को मैंने भी सहा है,
कई मीलो का सफ़र है ये मैंने भी जाना है,
फिर भी अपने ख्वाबों को हकीकत मैं बदलना चाहती हूँ,
मैं एक ऊँची उडान भरना चाहती हूँ।

है मुमकिन कहीं हार जाऊं,
तुफानो की तेज हवाओं में बिखर जाऊं,
टूट जाये आस, छुट जाये मंजिलें,
पर वक्त के फैसले को मैं मोड़ना जानती हूँ,
मैं एक ऊँची उडान भरना चाहती हूँ।

Monday, 1 July 2013

जिन्दगी

सूरज तो तपता रहेगा
उसकी तपन नहीं
इक रौशनी की किरण से
जगमगा देना तुम अपनी जिन्दगी को,

चाँद से तुम रौशनी की आस न करना
उसकी शीतलता से भर देना
तुम अपनी जिन्दगी को,

फूलो में तो कांटे भी होते है
पर निराश न होना,
उनकी खुशबु से भर देना
तुम अपनी जिन्दगी को

तारो से न मिलेगा तुम्हे कुछ भी
उनकी तरह मुस्कराहट से भर देना
तुम अपनी जिन्दगी को

इक ठूंठ भी बहुत कुछ सिखा देता है हमे
उसकी तरह होसले से भर देना
तुम अपनी जिन्दगी को,

रेगिस्तान को देखकर तो घबरा जाओ तुम
पर तब भी, पर तब भी
इक बूंद की आस से भर लेना
तुम अपनी जिन्दगी को,

हर शय में ख़ुशी छुपी होती है,


इन खुशियों से भर देना तुम अपनी जिन्दगी को...

Sunday, 30 June 2013

होंसले के पंख


पंख है आसमान है उड़ने का सभी साजो सामान है,
फिर भी फासला है इतना लम्बा कि लगता है,
गिरना ही महज़ इस कोशिश का अंजाम है.....
पंखो के भरोसे तो कुछ मील उड़ लेंगे,
और कुछ किस्मत के सहारे....
पर बिन होसले के कितनी मंजिले पार कर पाएंगे?

Monday, 13 May 2013

मेरी अनमोल माँ।


मिट्टी की सोंधी खुशबु जैसी मेरी माँ,
भोली सी बच्चे की मुस्कान जैसी मेरी माँ,

उसके स्पर्श से गहरे से गहरा जख्म भी मुस्कराने लगे,
उसके आँचल में छुपकर डर भी दूर भागने लगे,
उसकी मीठी सी डांट, लगे जैसे शहद टपकती हो,
उसकी मार भी नींद की थपकी सी लगे,

कभी सतोलिया कभी घर घर खेलने वाली,
गुडिया जैसी मेरी माँ,
परियों की कहानियां सुनाने वाली,


खुद परी जैसी मेरी अनमोल माँ।

Friday, 10 May 2013

होड़

मैं घंटो तक सोचता रहा क्या है वो राज़,
जिससे निकल सकू मैं सबसे आगे,
जीत सकू पूरी दुनिया..
सब कुछ तो आजमा चुका अब क्या है,
जिससे अनजान हूँ मैं?
पहले था सबसे पीछे तो बस,
भीड़ को चीर कर आगे बढने की होड़ थी,
आज आगे हूँ सब पीछे छोड़
फिर भी भाग रहा हूँ.... जाने किस होड़ में?
भागते भागते न जाने कितना दूर आ गया,
और न जाने क्या और कितना पीछे छोड़,
पर अंततः इतना तो जान ही लिया कि,
जो बाकी था वो था किसी अपने का साथ,
इसलिए वही रुक गया,
उस हाथ के इन्तेजार में जिसे
थाम फिर नई दिशा में कदम बड़ा सकू....